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देश को ख़ाली कर, ख़ुद का घर भर रहा है…

Written By Unknown on Thursday 14 March 2013 | 19:58


देश को ख़ाली कर, ख़ुद का घर भर रहा है
देश को ख़ाली कर , ख़ुद का  घर भर रहा है 
, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा  है  

इल्ज़ाम के नाम से तो नाक सिकुड़ रहा है  ,
पल-पल बैठा भ्रष्टाचार कर रहा है  ..
, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा  है  

मैं दूध का धुला,  पूरा गावँ  गुन्हेगार , यूँ   ,                    
नौटंकी कर , दिखावे पे दिखावा कर रहा है ..
, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा है  

रोज़ का अख़बार पढ़ , हे भगवान कहे रहा है ,
बहार तो ज़ुर्म के  ख़िलाफ़ ऊँगली नहीं उठा रहा है..
, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा  है  

महानता की बातों पे सत्यवादी बन रहा है ,
ज्ञान गलत बाँट कर, सचाई से डर रहा है ..
, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा  है  

अन्दर से हेवान, ऊपर महेंगे पोशाक पहेन रहा है ,
मंदिर,मस्ज़िद जा कर , जिसने बानाया ,उसीको बना रहा है..
, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा  है  

सामने मिलो तो नज़रे चुराए, फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज रहा है ,
आन्दोलन के लेख़ पर like का बटन दबा रहा है,
comment मार कर घर बैठे क्रांतिवीर बन रहा है ..
अरे , मिट्टी के मानव , तू ये क्या  कर रहा  है  

याद रख , जब तक ज़िंदा है , तब तक जी रहा है
ऊपर हिसाब देना है , ये क्यूँ नहीं सोच रहा है.. 
, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा है  

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