देश को ख़ाली
कर, ख़ुद का
घर भर रहा
है…
देश को ख़ाली कर , ख़ुद का घर भर रहा है ।
ऐ, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा है ।
इल्ज़ाम के नाम से तो नाक सिकुड़ रहा है ,
पल-पल बैठा भ्रष्टाचार कर रहा है ..
ऐ, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा है ।
मैं दूध का धुला, पूरा गावँ गुन्हेगार , यूँ ,
नौटंकी कर , दिखावे पे दिखावा कर रहा है ..
ऐ, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा है ।
रोज़ का अख़बार पढ़ , हे भगवान कहे रहा है ,
बहार तो ज़ुर्म के ख़िलाफ़ ऊँगली नहीं उठा रहा है..
ऐ, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा है ।
महानता की बातों पे सत्यवादी बन रहा है ,
ज्ञान गलत बाँट कर, सचाई से डर रहा है ..
ऐ, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा है ।
अन्दर से हेवान, ऊपर महेंगे पोशाक पहेन रहा है ,
मंदिर,मस्ज़िद जा कर , जिसने बानाया ,उसीको बना रहा है..
ऐ, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा है ।
सामने मिलो तो नज़रे चुराए, फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज रहा है ,
आन्दोलन के लेख़ पर like का बटन दबा रहा है,
comment मार
कर घर बैठे क्रांतिवीर बन रहा है ..
अरे ऐ, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा है ।
याद रख , जब तक ज़िंदा है , तब तक जी रहा है,
ऊपर हिसाब देना है , ये क्यूँ नहीं सोच रहा है..
ऐ, मिट्टी के मानव , तू ये क्या कर रहा है ।
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